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हिमाचल में एक ऐसा मंदिर, जिसके गुंबदों में मुस्लिमों और सिखों के प्रतीक भी शोभायमान हो रहे

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हिमाचल में एक ऐसा मंदिर, जिसके गुंबदों में मुस्लिमों और सिखों के प्रतीक भी शोभायमान हो रहे

कांगड़ा : देश में कई जगह नए मंदिरों के मिलने की चर्चा है। खबरें आ रही हैं। फोटो प्रकाशित हो रहे हैं। सुबूत मिल रहे हैं। मस्जिदों के नीचे भी मंदिर होने के दावे सामने आ रहे हैं। कई मामले अदालतों में भी चल रहे हैं। इस मामले पर बयानबाजी भी खूब हो रही है। तनाव जैसी स्थिति भी बन जा रही है। देश में मंदिर व मस्जिद की राजनीति खूब हो रही है। पर क्या आपको पता है कि हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसके गुंबद पर मंदिर का प्रतीक तो है ही, मुस्लिमों और सिखों के धर्मों के प्रतीक भी शोभायमान हैं। मंदिर पर तीन गुंबद हैं और तीन अलग-अलग धर्मों के हैं। यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द की सुंदर तस्वीर पेश करता है। यह मंदिर कांगड़ा शहर में स्थित है। यह माता श्री बज्रेश्वरी देवी जी का मंदिर है। आइए मंदिर के बारे में कुछ और जानते हैं :

52 शक्तिपीठों में से एक है कांगड़ा जी का मंदिर, भूकंप से गिरने के बाद 1930 में दोबारा बना था
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के कांगड़ा शहर में स्थित है। श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां सती माता जी का दाहिना वक्ष गिरा था। इस मंदिर में भद्रकाली, एकादशी व माता बज्रेश्वरी के रूप की पूजा होती है। वर्ष 1905 में कांगड़ा में शक्तिशाली भूकंप आया था। इसमें यह मंदिर गिर गया था। इसका निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ था और अब जो मंदिर है, यह 1930 में बना है। 1905 के भूकंप में इस मंदिर परिसर में स्थित श्री तारा देवी जी के मंदिर को नुकसान नहीं हुआ था।

घृत मंडल के पीछे यह है मान्यता, सात दिन पिंडी पर रहने के बाद बन जाती है औषधि
मकर संक्रांति पर श्री बज्रेश्वरी देवी जी के मंदिर में घृत मंडल पर्व हर साल मनाया जाता है। आजकल भी घृत सजा है। रात को भगवती जी का जागरण होता है। इसके पीछे मान्यता है कि जालंधर दैत्य को मारते समय मां के शरीर पर कई घाव हो गए थे। इनको ठीक करने के लिए देवी-देवताओं ने देसी घी को शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाया था। उसे घावों पर लगाया था। मक्खन से मां को सजाने के बाद फल व मेवों से पिंडी का शृंगार किया जाता है। प्रसाद रूपी इस मक्खन को खाने में नहीं बल्कि चर्म रोग से निजात पाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। माता की पावन पिंडी पर चढ़ा मक्खन सात दिन रहता है। उसके बाद पिंडी से उतारा जाता है। इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मक्खन एक औषधि के रूप में प्रयोग होता है। इससे घाव, फोड़े व चर्म रोग से निजात मिलती है।


कांगड़ा माता का मंदिर गगल हवाई अड्डे से लगभग आठ किलोमीटर है। गगल में जहाज से उतरने के बाद हवाई अड्डे के बाहर टैक्सी मिल जाती है। साथ में बस सेवा भी उपलब्ध है। रेललाइन से आते हैं तो पठानकोट से जोगेंद्रनगर तक ट्रेनें आती हैं, हालांकि आजकल पठानकोट से ट्रेन सेवा बंद है। कांगड़ा में रहने के लिए कई निजी होटल उपलब्ध हैं। इनमें सस्ते से लेकर महंगे हर किस्म के कमरे उपलब्ध हैं। सरकारी विश्राम गृह भी हैं, पर इनकी बुकिंग पहले करवाना जरूरी है। खाने के लिए कांगड़ी धाम के ढाबे भी हैं। पंजाबी व चाइनीज खाना आसानी से मिल जाता है।

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Author: speedpostnews

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