Home » Blog » राजा बेहंगमणु ने बसाया था कुल्लू शहर, देवों की है पावन स्थली, त्योहारों पर होते हैं देवमिलन

राजा बेहंगमणु ने बसाया था कुल्लू शहर, देवों की है पावन स्थली, त्योहारों पर होते हैं देवमिलन

Facebook
Twitter
WhatsApp

कुल्लू घाटी को ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां कई मंदिर और धार्मिक स्थल स्थित हैं। कुल्लू के बसने की कहानी इतिहास, किंवदंतियों और लोक कथाओं से जुड़ी हुई है।

कुल्लू का प्राचीन इतिहास

कुल्लू की स्थापना का श्रेय राजा बेहंगमणु को दिया जाता है, जो कुल्लू के पहले शासक माने जाते हैं। किंवदंती के अनुसार, राजा बेहंगमणु ने कुल्लू घाटी को विकसित किया और यहां शासन की नींव रखी। ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र पहले काफी दुर्गम और जंगली था। बेहंगमणु ने इसे मानव निवास के लिए उपयुक्त बनाया।

वैदिक काल में, कुल्लू को ‘कुलूत’ के नाम से जाना जाता था। महाभारत और पुराणों में भी कुलूत का उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि कुल्लू का संबंध रामायण काल से भी है। हनुमान जी ने यहां से ही संजीवनी बूटी के लिए यात्रा की थी।

राजा बेहंगमणु और कुल्लू की स्थापना

राजा बेहंगमणु ने कुल्लू घाटी के प्राकृतिक सौंदर्य और उपजाऊ भूमि को देखकर यहां बसने का निर्णय लिया। उन्होंने जंगलों को साफ कर खेती शुरू की और घाटी में एक व्यवस्थित बस्ती बसाई। उनका शासन न्यायप्रिय और धार्मिक माना जाता था। राजा बेहंगमणु के समय में कुल्लू में कला, संस्कृति और व्यापार का विकास हुआ।

कुल्लू घाटी का धार्मिक महत्व

कुल्लू घाटी का धार्मिक महत्व भी इसकी स्थापना से जुड़ा हुआ है। यहां के स्थानीय देवता, विशेष रूप से  रघुनाथजी, कुल्लू के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह माना जाता है कि राजा जगत सिंह ने भगवान रघुनाथजी की मूर्ति को अयोध्या से लाकर कुल्लू में स्थापित किया था। तभी से यह घाटी भगवान रघुनाथजी की भूमि मानी जाती है।

भूगोल और सामरिक महत्व

कुल्लू घाटी व्यास नदी के किनारे स्थित है और हिमालय से घिरी हुई है। इसकी रणनीतिक स्थिति ने इसे प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग बना दिया था। सिल्क रूट के व्यापारियों के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण पड़ाव था। इसके अलावा, कुल्लू की जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों ने इसे मानव निवास के लिए आदर्श स्थान बना दिया।

कुल्लू की संस्कृति और परंपराएं

कुल्लू की स्थापना के साथ यहां की लोक संस्कृति और परंपराएं विकसित हुईं। यहां के लोग आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं और रीति-रिवाजों को जीवित रखे हुए हैं। दशहरा महोत्सव, जो पूरे भारत में प्रसिद्ध है, कुल्लू की सबसे बड़ी सांस्कृतिक धरोहर है। इसकी शुरुआत राजा जगत सिंह के शासनकाल में हुई थी।

निष्कर्ष

कुल्लू की स्थापना राजा बेहंगमणु और बाद के शासकों के योगदान का परिणाम है। यहां का समृद्ध इतिहास, धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य इसे विशेष बनाता है। कुल्लू न केवल एक ऐतिहासिक स्थान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं का एक प्रतीक भी है। आज कुल्लू एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है, जो अपने प्राकृतिक दृश्य, मंदिरों और सांस्कृतिक महोत्सवों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है।

 

speedpostnews
Author: speedpostnews

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

टॉप स्टोरी

ज़रूर पढ़ें