नौई दिल्मलीः हात्मा बुद्ध का संसार से मन विरक्त होने के पीछे तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ थीं, जिन्होंने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें सन्यास की ओर प्रेरित किया।
- वृद्ध व्यक्ति का दर्शन: एक दिन जब सिद्धार्थ गौतम (महात्मा बुद्ध) महल से बाहर निकले, तो उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा, जो शरीर से दुर्बल और असहाय था। इस दृश्य ने उन्हें यह एहसास दिलाया कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर कमजोर हो जाता है और हर व्यक्ति को बुढ़ापे का सामना करना पड़ता है। यह एक दर्दनाक सच्चाई थी, जिसने सिद्धार्थ के मन में संसार के अस्थिरता और असंतोष को लेकर गंभीर सवाल खड़ा किया।
- बीमार व्यक्ति का दर्शन: इसके बाद सिद्धार्थ ने एक बीमार व्यक्ति को देखा। उसका शरीर कष्ट से भरा हुआ था, और वह पीड़ा में तड़प रहा था। इसने सिद्धार्थ को यह समझाया कि बीमारी और शारीरिक कष्ट जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं। इस दृश्य ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि शरीर के प्रति आसक्ति और भोगवाद से शांति और सुख प्राप्त नहीं किया जा सकता।
- मृत व्यक्ति का दर्शन: सिद्धार्थ ने एक मृत व्यक्ति को भी देखा। यह दृश्य उनकी मानसिकता को और भी अधिक प्रभावित करने वाला था, क्योंकि उन्होंने देखा कि मृत्यु हर जीवित प्राणी के जीवन का अंत है, और इससे कोई भी नहीं बच सकता। मृत्यु की अनिवार्यता ने सिद्धार्थ को यह एहसास दिलाया कि भौतिक जीवन और इच्छाओं में लिप्त रहना निरर्थक है, क्योंकि अंततः सभी को मृत्यु का सामना करना है।
इन घटनाओं ने सिद्धार्थ के मन को संसार से विरक्त कर दिया और उन्हें यह समझने के लिए प्रेरित किया कि सच्चा सुख और मुक्ति सांसारिक भोगों से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और मानसिक शांति में है। इस प्रकार, उन्होंने सन्यास का मार्ग अपनाया।

Author: speedpostnews
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