मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में “किराये की पत्नियों” की प्रथा है। इस प्रथा को धड़ीचा कहा जाता है। यह प्रथा गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या को उजागर करती है। यह प्रथा कानूनी रूप से मान्य नहीं है, लेकिन समाज के कुछ वर्गों में इसे आर्थिक तंगी और सामाजिक मजबूरियों के कारण अपनाया जाता है।
कैसे होती है यह प्रथा
शिवपुरी और उसके आसपास के क्षेत्रों में कुछ पुरुष अस्थायी रूप से महिलाओं को किराये पर “पत्नी” के रूप में रखते हैं। इसका मुख्य कारण मजदूरी या अन्य कार्यों के लिए बाहर जाने की मजबूरी है, जहां उन्हें अपने साथ एक महिला साथी की जरूरत पड़ती है। कुछ लोग इसे पारिवारिक सम्मान बचाने के लिए भी अपनाते हैं, ताकि समाज में उन्हें अकेला पुरुष न माना जाए।
प्रथा के पीछे की वजहें
1. आर्थिक तंगी – गरीब परिवारों की महिलाएं जीविका के लिए ऐसा करने पर मजबूर हो जाती हैं।
2. विवाह की कठिनाइयाँ – समाज में कुछ वर्गों के लिए विवाह कठिन हो जाता है, जिससे वे अस्थायी व्यवस्था की ओर बढ़ते हैं।
3. मजदूरी और प्रवास – कई पुरुष दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं, जहां उन्हें महिला साथी की जरूरत होती है।
4. सामाजिक परंपराएँ – कुछ इलाकों में यह वर्षों से चलता आ रहा है, जिससे यह एक स्वीकृत व्यवस्था बन गई है।
महिलाओं के लिए खतरे और चुनौतियाँ
-यह प्रथा महिलाओं को कानूनी अधिकारों से वंचित कर देती है।
-कई बार ये महिलाएं धोखाधड़ी और शोषण का शिकार होती हैं।
-बच्चों की परवरिश और उनकी सामाजिक स्थिति भी प्रभावित होती है।
-अगर पुरुष महिला को छोड़ दे, तो उसके पास कोई कानूनी सहारा नहीं होता।
सरकार और प्रशासन की भूमिका
हालांकि यह कोई वैध सामाजिक प्रथा नहीं है, फिर भी सरकार और सामाजिक संगठनों को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना, शिक्षा और कानूनी सहायता देना जरूरी है, ताकि वे इस स्थिति से बाहर निकल सकें।
सरकार, समाज और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर काम करना होगा
शिवपुरी में “किराये की पत्नियों” की प्रथा समाज में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता की ओर इशारा करती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार, समाज और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर काम करना होगा, ताकि महिलाओं को उनका अधिकार और सम्मान मिल सके।
