कुछ समय पहले शिमला में नौकरी के लिए एक युवक रोया था। यह बेरोजगारी की भयावह तस्वीर है। आज एक नहीं, कई युवक रो रहे हैं। यह डराने वाली तस्वीर है। पोल खोलती और सच्चाई बयां करती। सरकार के करीब इसलिए रोया कि कर्ताधर्ता भी देखें। पीड़ा समझें। बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का। अलग-अलग देशों में कारण भिन्न हो सकते हैं। भारत की बात करते हैं। हम केंद्र और राज्य सरकारों को दोष देते हैं। यह सरकारों का दोष नहीं। चाहे वर्तमान सरकारें हों या पूर्व की। किसी राजनीतिक दल की गलती नहीं।
असल में यह मानसिकता का दोष है। आम लोगों की मानसिकता। हमारी-तुम्हारी सोच। जिन्होंने सिर्फ अपनी चिंता की। पीढ़ियों के बारे में नहीं सोचा। सरकारों पर दबाव बनाकर ऐसे-ऐसे निर्णय करवाते रहे कि अब राज्य सरकारें लोन लेकर वेतन और पेंशन का इंतजाम करने को मजबूर हैं। केंद्र के आगे हाथ फैला रही हैं। ऐसा कब तक चलेगा। लोग अब भी संतुष्ट नहीं हैं। कभी होंगे भी नहीं। ह्यूमन नेचर जो है। प्रदेश में लाखों और देश में करोड़ों बेरोजगार। प्रदेश सरकार कुछ हजार या केंद्र सरकार कुछ लाख पद भर भी देती हैं तो क्या बेरोजगारी दूर हो जाएगी। बिलकुल नहीं। फिर रास्ता क्या है। देश-प्रदेश में कई आयोग बना रखे हैं। कुछ बिना काम के भी होंगे।
एक आयोग बेरोजगारों के लिए भी बना दें। यह आयोग सिफारिश करे कि बेरोजगारी कैसे दूर हो सकती है। केंद्र और राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर रिपोर्ट दे। हर साल दे या तीन साल में दे या पांच साल बाद। यह बताए कि अनपढ़ या पांचवीं फेल या आठवीं फेल या दसवीं फेल या बारहवीं फेल या बीए फेल या एमए फेल। तकनीकी प्रशिक्षितों को अधिक से अधिक रोजगार कैसे मिले। जो यह चिंता करे कि किसी की नौकरी चली जाए तो उसे दोबारा कैसे काम मिले। जो कुछ सौ या हजार नहीं, हर हाथ को काम देने पर चिंतन करे। रोज करे। दिन में करे। रात में करे। दोपहर को करे। और सुबह-शाम करे। अंधेरे में मंथन करे। उजाले में करे। आंधी में करे। तूफान में करे। सर्दी-गर्मी में करे। और मानसून में करे। हर एंगिल पर। जो सार्वजनिक सोचे। सभी की फिक्र करे और बराबर करे। और देर न करें। युवा बहुत निराश हैं। यह तस्वीर उसी सच्चाई को बयां करती है। एक नहीं, लाखों-करोड़ों युवाओं का यही दर्द है।
