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गीता का द्वादश अध्याय रोजाना पढ़िए, संवर जाएगी जिंदगी

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नई दिल्लीः

गीता का कौन सा अध्याय रोज पढ़ना जरूरी है और क्यों?

श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें जीवन, कर्तव्य, आत्मा, और ईश्वर के संबंध में गहरे आध्यात्मिक ज्ञान का वर्णन है। गीता के कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जिनमें से हर अध्याय का अपना विशेष महत्व है। लेकिन यदि रोज़ाना पढ़ने के लिए किसी एक अध्याय को चुना जाए, तो “द्वादश अध्याय” (भक्तियोग) सबसे उपयुक्त माना जाता है।

1. द्वादश अध्याय (भक्तियोग) क्यों महत्वपूर्ण है?

द्वादश अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने भक्तियोग का सार बताया है। यह अध्याय विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है जो भक्ति मार्ग को अपनाना चाहते हैं और जीवन में शांति एवं समर्पण का भाव लाना चाहते हैं।

इस अध्याय में कुल 20 श्लोक हैं, जिनमें श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि ईश्वर की भक्ति से व्यक्ति न केवल मोक्ष प्राप्त करता है बल्कि सांसारिक जीवन में भी सुख-शांति का अनुभव करता है।

2. रोज़ पढ़ने के लाभ

रोज़ द्वादश अध्याय पढ़ने से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं—

i) आत्मिक शांति और भक्ति का विकास

इस अध्याय में कहा गया है कि जो व्यक्ति ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखता है, विनम्र होता है, सभी प्राणियों के प्रति प्रेमभाव रखता है, और अहंकार से दूर रहता है, वही सच्चा भक्त होता है। रोज़ इस अध्याय का अध्ययन करने से मन में भक्ति, दया, और सहनशीलता का विकास होता है।

ii) कर्तव्य का सही मार्गदर्शन

इस अध्याय में यह स्पष्ट किया गया है कि ईश्वर की भक्ति करने के लिए न केवल मूर्तिपूजा बल्कि निष्काम कर्म और सेवा भी आवश्यक है। यह हमें यह सिखाता है कि हम अपने कर्म को भगवान को समर्पित करें और फल की चिंता किए बिना कार्य करें।

iii) जीवन में संतुलन बनाए रखना

भक्तियोग सिखाता है कि एक व्यक्ति को क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार से बचना चाहिए। यदि हम प्रतिदिन इस अध्याय का पाठ करेंगे, तो हमारे जीवन में संतुलन बना रहेगा और मानसिक शांति प्राप्त होगी।

iv) भयरहित और निर्भीक जीवन

इस अध्याय में बताया गया है कि जो व्यक्ति भगवान में पूर्ण विश्वास रखता है, वह सभी भय और शंकाओं से मुक्त हो जाता है। जीवन में अनिश्चितता और संघर्ष होते हैं, लेकिन भगवान की भक्ति से हम मानसिक रूप से मजबूत बनते हैं और विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखते हैं।

v) मोक्ष की प्राप्ति

इस अध्याय में कहा गया है कि जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति समर्पित होता है, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। यह अध्याय हमें मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है और आत्मा के शाश्वत स्वरूप को समझने में मदद करता है।

3. यदि पूरा अध्याय न पढ़ सकें, तो कौन-से श्लोक आवश्यक हैं?

यदि समय की कमी हो, तो इस अध्याय के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों का नित्य पाठ किया जा सकता है:

  1. अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं (12.5) – निर्गुण और सगुण भक्ति का महत्व
  2. मय्यावेश्य मनो ये मां (12.6-12.7) – भगवान में मन लगाना
  3. अद्वेष्टा सर्वभूतानां (12.13-12.14) – उत्तम भक्त के गुण
  4. सम: शत्रौ च मित्रे च (12.18-12.19) – समदृष्टि और संतोष

4. निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता का प्रत्येक अध्याय विशेष है, लेकिन द्वादश अध्याय (भक्तियोग) को रोज़ पढ़ने से जीवन में आध्यात्मिक स्थिरता, आत्मिक शांति, और भगवान के प्रति सच्ची भक्ति का विकास होता है। यह अध्याय हमें बताता है कि केवल कर्मकांड से नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और सेवा से ही ईश्वर प्राप्ति संभव है। रोज़ इस अध्याय का पाठ करने से व्यक्ति भयमुक्त, शांतिपूर्ण और संतुलित जीवन जी सकता है।

यदि संभव हो, तो इस अध्याय को सुबह-शाम पढ़ें और इसके श्लोकों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करें। इससे न केवल आध्यात्मिक उन्नति होगी, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्थिरता भी प्राप्त होगी।

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Author: speedpostnews

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