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क्या आप जानते हैं कि श्री गणेश जी का सिर किसने व क्यों काटा था; कटा सिर कहां पर रखा था, शिवजी ने उन्हें दोबारा हाथी का ही सिर क्यों लगाया

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भगवान श्री गणेश जी के कटे हुए सिर को लेकर कई मान्यताएं हैं, जो हिंदू धर्मशास्त्रों, पुराणों और लोककथाओं में वर्णित हैं। गणेश जी के जन्म, उनके सिर कटने और पुनः हाथी का सिर लगने की कथा हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और दार्शनिक शिक्षाएँ भी छिपी हुई हैं।

गणेश जी के जन्म की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान गणेश को अपने उबटन (शरीर की मैल) से बनाया था। एक दिन उन्होंने गणेश जी को आदेश दिया कि वे द्वार पर पहरा दें और किसी को भी अंदर न आने दें। उसी समय भगवान शिव वहाँ आए, लेकिन गणेश जी उन्हें भीतर जाने से रोकने लगे। गणेश जी को यह ज्ञात नहीं था कि शिव जी उनके पिता हैं। यह देखकर शिवजी अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया।

गणेश जी के कटे सिर को लेकर मान्यता

गणेश जी के कटे हुए सिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, जो विभिन्न धर्मग्रंथों और लोककथाओं में वर्णित हैं। उनमें से प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं—

1. गणेश जी का सिर स्वर्ग ले जाया गया
एक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया, तो उनका सिर अत्यंत दिव्य और तेजस्वी था। इस कारण, वह सिर पृथ्वी पर गिरते ही विलीन हो गया और देवताओं द्वारा स्वर्ग ले जाया गया।

2. शिवगणों ने गणेश जी का सिर फेंक दिया
दूसरी मान्यता यह कहती है कि भगवान शिव के गणों ने उनके कटे हुए सिर को बहुत दूर फेंक दिया था। इस वजह से जब शिवजी को गणेश जी को पुनर्जीवित करने के लिए उनके सिर की आवश्यकता पड़ी, तो वह उपलब्ध नहीं था। इसी कारण, उन्होंने हाथी के सिर को गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया।

3. कटा सिर गंगा में प्रवाहित कर दिया
कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गणेश जी के कटे हुए सिर को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया गया था। यह मान्यता यह दर्शाती है कि भगवान गणेश का पूर्व स्वरूप विलीन हो गया और वे एक नए स्वरूप में प्रकट हुए।

4. ब्रह्मांड में विलीन हो गया गणेश जी का सिर
एक अन्य मान्यता यह भी कहती है कि गणेश जी का सिर भगवान शिव के तेज और शक्ति के कारण ब्रह्मांड में विलीन कर दिया।

5. उत्तराखंड में गुफा में रखा

एक मान्यता यह भी है कि श्री गणेश जी का सिर उत्तराखंड में एक गुफा में रखा है। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर कहते हैं। भगवान शिव ने इनके सिर के ऊपर 108 पंखुड़ी वाला ब्रह्मकमल भी स्थापित किया था, जिससे आज भी पानी गिरता रहता है।

गणेश जी को हाथी का सिर कैसे मिला?
जब माता पार्वती को अपने पुत्र के सिर कट जाने का पता चला, तो वे अत्यंत दुखी हुईं और उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे गणेश जी को पुनः जीवित करें। शिवजी ने अपनी भूल को स्वीकार करते हुए इस समस्या का समाधान निकालने का निश्चय किया।

भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर जाएं और किसी जीव के सिर को लेकर आएं, लेकिन शर्त यह थी कि वह जीव अपनी माता के प्रति अत्यंत श्रद्धा और स्नेह रखने वाला होना चाहिए। गणों ने बहुत खोजने के बाद एक हाथी के शिशु को पाया, जिसकी माता का स्नेह अपने बच्चे के प्रति अद्वितीय था।

गणों ने उस हाथी का सिर लाकर भगवान शिव को सौंप दिया। शिवजी ने उस सिर को गणेश जी के धड़ से जोड़कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इस प्रकार भगवान गणेश को हाथी का सिर प्राप्त हुआ और वे “गजानन” कहलाए।

गणेश जी के सिर की कथा का आध्यात्मिक और सांकेतिक अर्थ

गणेश जी के सिर कटने और हाथी का सिर लगाए जाने की कथा को प्रतीकात्मक रूप में भी देखा जाता है। यह कथा कई गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश देती है—

1. अहंकार का नाश – गणेश जी का सिर कटना यह दर्शाता है कि जीवन में अहंकार का अंत आवश्यक है। अहंकार का विनाश होने के बाद ही व्यक्ति ज्ञान, बुद्धि और विवेक प्राप्त कर सकता है।

2. ज्ञान का प्रतीक – हाथी का सिर धैर्य, बुद्धिमानी और विशाल सोच का प्रतीक है। यह बताता है कि व्यक्ति को धैर्यवान, सहनशील और बुद्धिमान बनना चाहिए।

3. कर्तव्य और भक्ति – गणेश जी माता पार्वती के आदेश का पालन कर रहे थे, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए।

4. मृत्यु और पुनर्जन्म – गणेश जी की कथा यह भी दर्शाती है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है और नया स्वरूप प्राप्त होता है।

पौराणिक और लोक मान्यताएं
भगवान गणेश के कटे हुए सिर को लेकर कई पौराणिक और लोक मान्यताएँ हैं। कुछ कथाओं में इसे स्वर्ग ले जाने की बात कही गई है, कुछ में इसे गंगा में प्रवाहित करने की, तो कुछ में इसे ब्रह्मांड में विलीन होने का उल्लेख मिलता है। अंततः, इस कथा का मुख्य संदेश यह है कि व्यक्ति को अहंकार से दूर रहना चाहिए, बुद्धिमान और धैर्यवान बनना चाहिए तथा अपने माता-पिता और गुरु के आदेशों का पालन करना चाहिए। यही कारण है कि भगवान गणेश को “विघ्नहर्ता” और “बुद्धि के देवता” के रूप में पूजा जाता है।

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Author: speedpostnews

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